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समय क्या है? जब से इंसान अपनी उत्पति को जानने के लिए ललाहित हुआ तब से ही यह प्रश्न मानव सभ्यता को चुनौती दे रहा है। इतिहास में बहुत से विद्वानों ने अपना संपूर्ण जीवन समय को समझने में व्यतीत कर दिया था। लेकिन किसी को भी समय की वास्तविक प्रकृति समझने में सफलता नहीं मिली। हमारे विश्व की लगभग हर बौद्धिक रूप से गतिशील सभ्यता ने समय को समझने में अभूतपूर्व कार्य किया है।  उनके द्वारा किया गया कार्य हमारी आज की समय की परिभाषा का आधार है और आज भी हम विभिन्न प्रकार की मूलभूत गणनाये और प्रयोगों के द्वारा समय के वास्तविक रूप को समझने का प्रयास कर रहे हैं। अगर हम साधारण दृष्टिकोण से समय को परिभाषित करने की कोशिश करें तो हम यह कह कह सकते हैं की समय किन्हीं दो आयोजनों के होने के बीच के अन्तराल को मापने का एक ज़रिया मात्र है।

CONFUSION: What is time?

सनातन धर्म में समय को निरंतर और चक्रीय माना गया है। इसके अनुसार जैसे जैसे ब्रह्मांडीय ऊर्जा एक दूसरे के परस्पर क्रिया करती है वैसे वैसे समय निरंतर जन्म लेता रहता है। इसके अनुसार जैसे जैसे समय आगे बढ़ता है वैसे वैसे ब्रह्माण्ड में स्थापित सभी वस्तुएँ विघटित होंगी और ब्रह्माण्ड फिर से शून्य पर पहुँच जाएगा। शून्य पर से दोबारा ब्रह्माण्ड का जन्म होगा जब ब्रह्मांडीय ऊर्जा एक दूसरे के परस्पर क्रिया करेगी और समय फिर उत्पन्न होगा। हमें सनातन ग्रंथो में बहुत जगह यह भी उल्लेख मिलता है जहाँ पर समय को मिथ्या और माया बताया गया है। ग्रंथों में समय के सापेक्ष होने के भी उल्लेख मिलते है जहाँ पर देवों, दानवों, मनुष्यों, ब्रह्मा,सूक्ष्म जीव,पित्र ,मन आदि के समय के अलग अलग होने का उल्लेख किया गया है। इसी तरह ग्रीक सभ्यता में समय को दो तरह से बताया गया है, एक है “क्रोनोस” (chronos) और दूसरा है “कैरोस” (kairos)। क्रोनोस हमें निरंतर और मनुष्यों के समय को बताता है जो निरंतर एक ही दिशा में चलता है बल्कि कैरोस बताता है उस समय को जो निरंतर नहीं है और कभी भी बदलता है। कबाल्लाह (यहूदी विचारकों का एक समूह) परंपरा में समय को केवल विरोधाभास और माया ही माना गया है। बहुत से पश्चिमी सभ्यता के विद्वानों (Newton , Einstein) ने आगे चलकर इन सभी मतों पर बहुत कार्य किया और समय को अच्छी तरह से प्रयोगात्मक और गणितीय तरीके से समझने का प्रयास किया है।  और आज भी पूरी दुनिया के विद्वान समय की वास्तविकता को समझने में लगे हुए हैं। 

Sir Isaac Newton के अनुसार समय केवल घड़ी के द्वारा दो आयोजनों के होने के बीच के अन्तराल को मापने का एक ज़रिया मात्र है। Newton के अनुसार घड़ी का  यह चलन समस्त ब्रह्माण्ड में एक जैसा है। अगर हम Newton की इस अवधारणा को परखने की कोशिश  करें तो हम पाते है की यह अवधारणा हमारे शास्त्रीय दुनिया (Classical World) और हम पर पूरी तरह से लागू होती है। परन्तु यदि हम इस अवधारणा को अति गतिशील वस्तुओं और क्वांटम दुनिया (Quantum World) जैसे अति सूक्ष्म कण पर परखने की कोशिश करें तो यह अवधारणा धरासाई हो जाती है। तो अब यह प्रश्न उठता है कि समय की सर्वव्यापी परिभाषा क्या है? कई वर्षों तक इस प्रश्न से जूझने के बाद एक ऐसी शक्शीयत का आगमन होता है जो पूरी तरह से भौतिकी और प्रकृति के प्रति हमारे दृष्टिकोण को बदल देता है। यह व्यक्ति था महान भौतिक शास्त्री अल्बर्ट आइंस्टीन जिनके द्वारा दिए गए सापेक्षता के सिद्धांत से हम प्रकृति को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ पाए।  

सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार वास्तविकता कभी पूर्ण नहीं होती बल्कि वास्तविकता सापेक्ष होती है। यह सिद्धांत हमें बताता है की समय इस ब्रह्माण्ड की मूलभूत सच्चाई है और यह हमें भूत, वर्तमान और भविष्य की समस्त चीज़ों की प्रगति और अस्तित्व को अध्ययन करने में मदद प्रदान करता है। यह सिद्धांत हमें बताता है कि वस्तु की गति के साथ उसका समय भी बदलता है। इस समय के बदलाव को हम अभी तक  केवल अति गतिशील (जिनकी गति प्रकाश की गति के आस पास है) वस्तुओं में ही देख सकते है क्योंकि कम गति की वस्तुओं के समय में हुए बदलाव अति सूक्ष्म होते जो हम वर्तमान प्रौद्योगिकी से नहीं जान सकते पर इस सिद्धांत की गणितीय सूत्रों की मदद से हम उस बदलाव को सैद्धांतिक रूप से जान सकते हैं। उदाहरण के तौर पर हम पाई – मेसॉन  (𝝅-meson) कण को ले सकते है, यह  कण लौकिक किरणों  (cosmic rays) और हमारे पृथ्वी के वायुमंडल के परस्पर क्रिया के द्वारा हुए विघटन से वायुमंडल की सबसे ऊपरी परतों पर बनता है। इस कण की जीवनकाल अवधि केवल 2 माइक्रो सेकंड (2 सेकंड का 10 लाख वां हिस्सा) है और इसकी गति लगभग प्रकाश की गति के समान होती है। हम इस कण का पृथ्वी पर से  पता लगा सकते हैं और इसका अध्ययन कर सकते हैं। परन्तु यदि हम Newton के नियमों के अनुसार इस प्रक्रिया को समझने की कोशिश करें तो हम पाएंगे की इस कण का पृथ्वी पर पहुँचना नामुमकिन है। तो यहाँ पर हमारे बचाव के लिए सामने आता है सापेक्षता का सिद्धांत जो हमें बताता है की यदि कोई वस्तु प्रकाश की गति के आस पास गति से चल रहा है तो उसका समय हमारी दुनिया के समय से अलग चलता है। यह कण अति गति के साथ पृथ्वी की ओर बढ़ रहा होता है और जिस कारण सापेक्षता के सिद्धांत के मुताबिक इसका समय फैल जाता है। इसका मतलब यह है की यदि हम इसके गति का पृथ्वी पर से विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि कण की जो जीवन अवधि पहले 2 माइक्रो सेकंड की थी वो अब फैल कर 15 माइक्रो सेकंड की हो गयी है और इसलिए अब यह कण आसानी से इतनी गति पर पृथ्वी तक पहुँच सकता है। अगर हम एक और उदाहरण ले तो वो इस प्रकार है मान ली जिये की दो दोस्त है राम और श्याम, राम यह ठान लेता है की वो एक प्रकाश की गति के आस पास चलने वाली ट्रेन से अगले कुछ वर्षों तक इस ब्रह्माण्ड में घूमेगा। तो मान लीजिये अब राम 3 वर्षों बाद वापिस जब अपने दोस्त श्याम से मिलने पहुँचता है तो वो पाता है की उसका दोस्त श्याम अब बहुत अधिक बूढ़ा हो गया है बल्कि वह अभी काफी जवान है (3 साल बड़ा है जब वह श्याम को छोड़ कर गया था) । तो यह हुआ कैसे इसका उत्तर भी हमें यही सिद्धांत देता है, कि जब राम यहाँ से ट्रेन में बैठ कर गया तो उसकी गति बहुत अधिक थी जिस कारण उसके समय में फैलाव आ गया था तो इसी वजह से जो समय राम के लिए केवल 3 वर्ष व्यतीत हुआ वो श्याम के लिए 50 वर्ष व्यतीत हुए हैं। तो इन उदाहरणों के माध्यम से हम कह सकते है की समय सापेक्ष होता है न की पूर्ण।

अभी तक हमने समय की क्या प्रकृति है सिर्फ इसी बात पर चर्चा की है पर अब प्रश्न यह उठता है की समय कैसे पैदा होता है ? अभी तक के प्रयोगों और ज्ञान से हमें यह मालूम है की समय किन्ही दो चीज़ों जैसे ऊर्जा के परस्पर क्रिया से जन्म लेता है और जब तक यह क्रिया चलती रहेगी तब तक समय जन्म लेता रहेगा। परन्तु इस बात की पूर्ण सत्यता पर भी सभी विद्वान एक मत्त नहीं है क्योंकि उनका तर्क यही है कि जहाँ पर पूर्ण शून्य है क्या वहां पर समय है या नहीं? समय निश्चित रूप से ही एक जटिल विषय है और आज तक हम इसकी वास्तविकता को समझने में असमर्थ हैं। कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि समय ब्रह्माण्ड की मूलभूत सचाई नहीं है बल्कि ये सिर्फ एक माया है। वो इस बात को तर्क संगत साबित करने के लिए मत देते है कि समय एक सापेक्ष मात्रक है जो दो वस्तुओं के दृष्टिकोण, गति, भार पर निर्भर करता है तो इसलिए यह केवल एक माया है। एक मत और सामने आता है वो यह है कि जो वस्तुएँ और कण प्रकाश की गति से चलते है उनके लिए टाइम रुका हुआ प्रतीत होता है मतलब उन सब कणों के लिए समय कोई मायने नहीं रखता। तो इसलिए उन विद्वानों ने समय रहित सिद्धांत का सूत्रीकरण किया है और उस सिद्धांत अति मूलभूत बनाने में लगे हुए हैं। वो तर्क देते हैं कि गुरुत्वाकर्षण  समय में बदलाव लाता है तो प्रश्न यह उठता है की जहाँ पर गुरुत्वाकर्षण ही नहीं है वहां पर समय क्या मायने रखता है? बहुत से विद्वान यह खोजने में लगे हुए हैं की समय के प्रवाह को उल्टा कैसे किया जा सकता है? आज हम समय और ग्रुत्वकर्षण को जोड़ कर एक संपूर्ण सिद्धांत बनाने में लगे हुए हैं।  निस्संदेह ही समय की वास्तविकता को समझना बहुत चुनौती पूर्ण काम है पर ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर ढूंढने में विज्ञान का असल मजा छिपा हुआ है। माना की अभी हम समय की वास्तविकता को समझने में असमर्थ है पर हम समय की निरंतरता के साथ इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने में प्रगति कर रहे हैं और निस्संदेह हम भविष्य में समय की वास्तविकता को समझने में सफलता प्राप्त कर लेंगे। 

जो विद्यार्थी इस विषय में शोध करना चाहते है उन के लिए यह बहुत सुनहरा और चुनौती पूर्ण कार्य है जहाँ पर उनका बौद्धिक और सांसारिक विकास बहुत ही उत्कृष्ट दर्जे का होगा और वह सारे संसार में ख्याति भी प्राप्त कर पाएंगे।


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